उद्धव महाजन 'बिस्मिल' साहब ग़ज़लोंकी जुबानी

पडाव-१....
🌹उद्धव महाजन 'बिस्मिल' साहब ग़ज़लोंकी जुबानी🌹
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                            ....नानाभाऊ माळी

भाईयो और बहनों! 
...मैं चलता गया!रास्ता मिलता गया!दिक्कतों के साथ मैं उलझतां गया!मुसाफिर बन कर झुलसता गया!रास्ता अंजान था! मैं भी अंजान था!कठिनाइयों संग दोस्ती बढातां गया!कौन थे अपने और कौन थे पराये!रिश्तेदार और सब को समजता गया!शायरी लिखते-लिखते,अपने आप को ढूंढता गया मैं!

 *बचपन की यादें ताजा करने आगे चला जा रहा हुं मैं!खुद को ढूंढता हुआ चला जा रहा हूँ मैं!साथ में सब कुछ था मेरा इमान भी!हसीन जिन्दगी के साथ थोडासा गम भी था!आँसु भी थे!माँ की गोद में बचपन पला था मेरा!सुकूनभरी जिन्दगी को पिछे छोड़ आगे चलता गया!कौन हूँ मैं?खुद को ढूँढ रहा हूँ!कई सालों से अब तक खुद को पहचान रहा हूँ मैं!नजरे बदली!नजरीयां बदल गया!अदब के मैदान में मेंरी तकदिर लिखता चला गया!बिस्मिल मैं होता चला गया!घायल दुनियाँ देख बिस्मिल होता चला गया!कौन था घायल बिस्मिल? दुनियाँ का दुःख देख कर दिल घायल होता गया!दुनियाँ की पहचनात बिस्मिल भूलाता चला गया!* 
 
 *मंजिल मिले!मिले न मिले इसका गम नही!मंजिल की जुस्तजू में मेरा कारवाँ तो हैं!* आज तक उर्दू शायरी के हवालेसे उर्दू हलकों तक आप की पहुँच हो चुकी थी!अपनी कोशिशों और काविशो से मुख़्तलीफ असनाफ की ओर मैंने तवझो करनी चाही! मादरी जबान मराठी होने की वजह से काफ़ी मुश्किलों से गुजरना पड़ा! मुसलसल और मूतवातीर मुतालेआ खास तौर से असानेजा को पढ़ना जरूरी था!और *मौका- ब मौका मैं उर्दू के मदिनो की तख लिकास मुतालेआ और मुशाहीदा करता रहा और उससे मुझे इस्तफादा भी हुआ*! 

मेरे उस्ताद डॉ.नज़ीर ने मुझसे का कहा की अब शायरी में तुम्हारी सही पहचान हो गई हैं!अब शायरी के अलावा नज्म की ओर तवज्जो करनी चाहिये!उनका कहना है-कोई भी फनकार जब अपनी आँखे खुली रखकर मुशाहिदा करता हैं तो उसे रास्तों मंजिलो का इल्म होता हैं! कामयाबी बाद की चीज हैं!पहले तो हौसला और एतमाद बहुत जरूरी हैं!...... *अपना चाहा दिन करे,अपनी चाही रात!धुन पकते देवता माने किसकी बात!!मैं बातों को वास्तव से जोड कर दिन-ब-दिन हालात देखता रहा!मेरी ग़ज़ल रूठीसी!धुंधली सी नज़र आ रही थी मुझ को!दिल के समन्दर में छुपा रहा था उसको!कुर्बान थी लफ्जो से रूह को देख रही थी!अकेली पर्दा उठा कर मुझमें समा रही थी....* .....
...

भाईयों और बहनों! 
उद्धव महाजन 'बिस्मिल'जी की शायरी में बादलों का गिड़गिड़हट हैं!बरसात की रिमझिम हैं!ग़ज़ल की नरमी हैं!उसे अपनी गोद में बिठा कर 'बिस्मिल'साहबआगे निकल चुके हैं!अपनी कलम के साथ!विचारों के साथ!अपनी शायरी के साथ!गझल के साथ!साथ ही साथ अपनी जुबान के साथ!...... फिर मिलेंगे बिस्मिल साहब इनके ग़ज़लो के साथ, अगले पडाव पर!शुक्रिया!धन्यवाद!
                        🌷🌷🌷
                         .…...........

               ......नानाभाऊ माळी,
                   हडपसर,पुणे-४११०२८
                   मो.न.९९२३०७६५००
                           ७५८८२२९५४६ 
                 दिनांक-२६नोव्हेंबर२०२०

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